चीन में दशकों बाद सरकार के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन, माओ के बाद सबसे मजबूत नेता जिनपिंग को हटाने तक के नारे लगे

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चीन में दशकों बाद सरकार के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन हो रहे हैं। तमाम पाबंदियों के बावजूद लोग शंघाई की सड़कों (वूलुमुकी लू) पर उतर आए। ये सड़क शिनजियांग के उस शहर के नाम पर है जहां पिछले हफ्ते एक इमारत में आग लगने से दस लोगों की मौत हो गई। राजधानी बीजिंग से शुरू हुआ प्रदर्शन अब तक लॉन्चो, शियान, चोंगकिंग, वुहान, झेंगझोऊ, कोरला, होटन, ल्हासा, उरुमकी, शंघाई, नानजिंग, शिजियाझुआंग तक पहुंच चुका है। यहां तीन दिनों से लोग सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं।

 

एक्सपर्ट्स चीन में सरकार, और खासकर राष्ट्रपति शी जिनपिंग के खिलाफ इतने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन के कई कारण मानते हैं। कोरोना के बाद चीन की इकोनॉमी अपनी रफ्तार से भटक गई है। ताइवान, भारत और अमेरिका से टकराव वाली विदेश नीति में उसे नुकसान ही झेलना पड़ा है। सेहत के मोर्चे पर भी चीन लगातार संकट में घिरा है। तमाम कवायदों के बावजूद चीन कोरोना को नियंत्रित नहीं कर पा रहा है और कोविड लॉकडाउन ने नागरिकों का जीना दूभर कर दिया है। आइए सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं चीन में मची उथल-पुथल को।

कोरोना नियंत्रण में चीन नाकाम

चीन में जीरो कोविड पॉलिसी के बावजूद कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक चीन में पिछले 7 दिनों में कोरोना के 1,48,322 नए मामले दर्ज किए गए हैं और 418 लोगों की मौत हुई है। लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी कहते हैं कि चीन में स्थिति बहुत विस्फोटक है। लोग शी जिनपिंग की नीतियों के विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं। बैंकिंग और रियल एस्टेट इंडस्ट्री बहुत खराब हाल में है। वहां अर्थव्यवस्था की स्थिति खराब होने के साथ ही जीरो कोविड पॉलिसी को लेकर लोगों में काफी रोष है।

जिनपिंग के खिलाफ नारेबाजी

हाल में हंगामा शिनजियांग प्रांत की राजधानी उरुमकी के एक अपार्टमेंट में आग लगने के बाद शुरू हुआ। इस घटना में 10 लोगों की जान चली गई। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो इस प्रदर्शन ने तब उग्र रूप ले लिया जब यह बात सामने आई कि लॉकडाउन के कारण दमकलकर्मियों को घटनास्थल तक पहुंचने में देर हुई।

चीन में जीरो कोविड पॉलिसी को लेकर हो रहे बवाल के वीडियो और इमेज वायरल हो रहे हैं। इनमें छात्र खाली सफेद पोस्टर पकड़े नारे लगा रहे हैं और लोकतंत्र और बोलने की आजादी की मांग कर रहे हैं। शंघाई में हुए विरोध प्रदर्शनों के वीडियो में लोगों को खुलेआम जिनपिंग और कम्युनिस्ट पार्टी के विरुद्ध नारेबाजी करते हुए सुना जा सकता है।

विश्वविद्यालयों तक पहुंचा विरोध

यह प्रदर्शन चीन के चेंगदू, गुआंगझोउ और वुहान तक फैल गया है, जहां लोगों ने कोविड प्रतिबंधों को खत्म करने की मांग की है। चीन में इस तरह का दृश्य आम नहीं है। दरअसल यहां सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी विरोध की आवाजों को दबा देती है। इस बार भी पुलिस को शंघाई में प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करते देखा जा सकता है। कोविड प्रतिबंधों का यह विरोध बीजिंग और नानजिंग में विश्वविद्यालयों के कैंपस तक पहुंच गया है। रविवार तक दर्जनों यूनिवर्सिटी कैंपस में हाथों में पोस्टर पकड़े छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया। 1989 में भी तियानमेन स्क्वायर पर हुए भारी विरोध प्रदर्शन की अगुवाई छात्रों ने ही की थी, जिसे कुचलने के लिए 4 जून को टैंक तक का इस्तेमाल किया गया था।

दून विश्वविद्यालय में चाइनीज स्टडीज के असिस्टेंट प्रोफेसर मधुरेंद्र कुमार झा कहते हैं कि चीन में लोगों की नाराजगी का कारण जीरो कोविड पॉलिसी की वजह से उनका जीवन दुरूह होना है। वह खाने के लिए भी बाहर नहीं निकल सकते हैं। झा कहते हैं कि इकोनॉमी, विदेश नीति जैसे मसले तो चीन सरकार अपने प्रोपोगेंडा से सुलझा सकती है लेकिन कोरोना की विकराल स्थिति को दुरुस्त करना ही चीन सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है। वह कहते हैं कि माओ त्से तुंग के समय भी चीन विदेश नीति के मोर्चे पर अलग-थलग पड़ा था, लेकिन तब जनता साथ थी। कोरोना की स्थिति बेहतर होने पर जिनपिंग सरकार आर्थिक और विदेश नीति पर लोगों को समझा सकती है। ऐसे में कोरोना की स्थिति सुधारना ही चीन की सरकार की प्राथमिकता होगी।

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