मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्त (EC) के चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है. उच्च न्यायलय का यह फैसला एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय माना जा रहा है जो भारत के शीर्ष चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति के तरीके को बदलने के लिए दिया गया है.
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ (Constitutional Bench of 5 Judges) ने गुरुवार को सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश वाली एक उच्च-शक्ति समिति को मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्त (EC) चुनना चाहिए. उच्च न्यायलय का यह फैसला एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय माना जा रहा है जो भारत के शीर्ष चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति के तरीके को बदलने के लिए दिया गया है. अभी तक, केंद्र सरकार के पास अनिवार्य रूप से इन अधिकारियों की नियुक्ति करने की खुली छूट है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार न्यायमूर्ति के एम जोसेफ (Justice M Joseph) की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने निदेशक, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के मामले में अपनाई जाने वाली चयन प्रक्रिया के समान याचिकाओं पर फैसला सुनाया. बेंच में जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सी टी रविकुमार भी शामिल थे.
गौरतलब है कि जनहित याचिकाओं में सीईसी और ईसी की नियुक्ति को नियंत्रित करने वाले कानून की मांग की गई थी. पहली जनहित याचिका 2015 में दायर की गई थी, और सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में दिल्ली भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर मुद्दे पर दूसरी जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की, और इन मुद्दों को एक संविधान पीठ को भेज दिया. कोर्ट ने पिछले साल नवंबर में मामले की सुनवाई शुरू की थी. सुनवाई के आखिरी दिन, अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति “बिजली की गति” से की गई थी, इस प्रक्रिया में 24 घंटे से भी कम समय लगा था.
वर्तमान में CEC और EC की नियुक्ति कैसे की जाती है?
संविधान के भाग XV (चुनाव) में सिर्फ पांच अनुच्छेद (324-329) हैं. संविधान का अनुच्छेद 324 “चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण” को चुनाव आयोग को सौंपता है, जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की संख्या शामिल हैं. आपको बता दें कि संविधान सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए एक विशिष्ट विधायी प्रक्रिया निर्धारित नहीं करता है. फिलहाल राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर नियुक्ति की जाती है.
हालांकि भारत के संविधान ने बारीकियों में जाए बिना चुनाव आयोग को व्यापक अधिकार दिए हैं. 15 जून, 1949 को संविधान सभा में इस प्रावधान को पेश करते हुए, बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था, “पूरी चुनाव मशीनरी एक केंद्रीय चुनाव आयोग के हाथों में होनी चाहिए, जो अकेले रिटर्निंग अधिकारियों, मतदान अधिकारियों और अन्य लोगों को निर्देश जारी करने का हकदार होगा”. संसद ने बाद में आयोग की शक्तियों को परिभाषित करने और बढ़ाने के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 को लागू किया.
क्या चुनाव आयोग हमेशा तीन सदस्यीय बॉडी थी?
नहीं, संविधान लागू होने के बाद से 1989 तक, चुनाव आयोग केवल एक मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) के साथ एक सदस्यीय निकाय था. राजीव गांधी सरकार और तत्कालीन सीईसी आर वी एस पेरी शास्त्री के बीच घर्षण के माहौल में नौवीं लोकसभा के चुनाव से ठीक पहले चुनाव आयोग का विस्तार किया गया था.